जो सुख प्रभ गोबिंद की सेवा,सो सुख राज ना लइए
गुरु अमरदास जी के एक सेवक थे जिनका नाम था भाई बलु,,,,इनकी सेवा से खुश हो कर एक दिन गुरु जी ने कहा भाई बलु,,गुरु नानक साहेब का मन है अब वो आप के शरीर में बैठ कर जगत का उद्धार करें,,,,जो गुरुगदी सेवा के कारण गुरु अंगद साहेब को धन गुरु नानक साहेब से मिली और धन गुरु अंगद साहेब ने अपने इस सेवक अमरदास को नवाजी,,,अब गुरु नानक इस गद्दी पर आप को बिठाना चाहते है
भाई बलु ने हाथ जोड़ कर कहा:-सतगुरु,ये गुरुगदी आप को ही शोभती है,,,मुझे तो आप की सेवा में ही अति आनन्द मिलता है मैं तो नित्य गुरु जी यही अरदास करता हूँ कि मैं सदा आप का सेवक बना रहूँ और आप की सेवा करता रहूँ,,आप की सेवा से ज्यादा आनन्द मुझे किसी चीज में नही मिलता,,,आप मुझे सेवक ही रहने दें
सेवा की पराकाष्टा पर बैठे भाई बलु को गुरु अमरदास जी ने कहा :-भाई बलु ये हुक्म अमरदास का नही गुरु नानक साहब का था और जे तूँ मेरे गुरु नानक साहेब दा हुक्म नही मनना तां शरीर छोड़ दे
भाई बलु ने शीश नवाया और अपने घर जा कर अपने जाँनिसार सतगुरु धन गुरु अमरदास जी का हुक्म मानते हुए उनके चरणों का ध्यान धरके अपना शरीर त्याग दिया,,,,,धन्य सेवा,,,धन्य सिखी,,,धन्य भाई बलु,,,,
Waheguru ji
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