Saakhi – Baba Mohri Ji Or Gyan Ka Shisha
बाबा मोहरी जी और ज्ञान का शीशा
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धन गुरू अमरदास जी का दरबार लगा हुआ था। गुरू साहब जी संगत पर अपनी रहमतें बरसा रहे थे। गुरू साहब के पुत्र भाई मोहरी जी जो गुरु कृपा से हमेशा सिमरन में जुड़े रहते थे। सतगुरू पिता जी के दर्शन करने के लिए आए तो उनके साथ संगत में बैठे कुछ लोग किसी धनवान के लाख टकों के बारे में बात कर रहे थे। बाबा मोहरी जी का ध्यान भी उनकी बातों की तरफ चला गया।
बाबा मोहरी जी के मन में ख्याल आया, लाख टके कितने होते हैं? मैंने तो आज तक लाख टका एक साथ कभी नहीं देखे।
इसी ख्याल में डूबे मोहरी जी जब गुरू साहब को शीश निवाने (प्रणाम करने) के लिए पहुँचे तो सभी के दिलों की जानने वाले सतगुरू ने बाबा मोहरी जी के मन में उठी बेचैनी को दूर करने के लिए संगत को हुक्म किया कि आज सारी संगत अपने अपने पास रखे सभी टके धन गुरू नानक साहब जी के चरणों में सेवा में पेश करें।
गुरू साहब को हुक्म करने की ही देर थी कि गुरू साहब के चरणों में माया का ढेर लग गया। फिर गुरू साहब ने बाबा जी को हुक्म किया, बाबा मोहरी, इनको गिन कर बताओ कितने हैं ?
बाबा मोहरी जी बहुत खुश हुए क्योंकि गुरू साहब ने उनके लाख टके देखने की इच्छा पल में ही पूरी कर दी थी।
बाबा जी ने खुशी-खुशी टके गिनने शुरू कर दिए। बाबा जी गिनती करके टके एक तरफ रखने लग गये। कुछ समय बाद जगह कम पडऩे लगी तो बाबा जी अपनी गोदी में रख टके गिनने लगे और एक निश्चित संख्या के बाद गिने हुए टके पहले वाले ढेर पर उलट देते।
कई घंटे बीतने के बाद भी टकों की गिनती पूरी नहीं हो सकी। लोहे से बने टके अपनी कालिख छोड़ रहे थे। बाबा मोहरी जी के दोनों हाथ और सफेद कपड़े कालिख से काले हो गए। माथे का पसीना साफ करते समय कालिख वाले हाथ मुँह पर लगने से उनका पवित्र चेहरा भी काला हो गया।
तब गुरू साहब ने अपने प्यारे सेवक भाई पारो जी को एक शीशा ले कर आने का हुक्म किया। भाई पारो ने शीशा ला हाजिर किया। गुरू साहब ने वह शीशा टके गिनने में मग्न बाबा मोहरी जी के सामने रख दिया।
बाबा मोहरी जी ने जब अपने आप को शीशे में देखा तो एकदम से खड़े हो गए और गुरू साहब जी को नमस्कार कर गुरू दरबार में से निकल गए और अपने निवास पर जाकर फिर से सिमरन में लीन हो गए।
भाई पारो जी ने पूछा सतगुरू जी आप जी के हुक्म से ही बाबा मोहरी जी माया की गिनती कर रहे थे। आप जी ने जब शीशा उनके सामने रखा तो वह एकदम उठ कर चले गए। कहीं वह नाराज तो नहीं हो गए ?
गुरू साहब ने जवाब दिया, नहीं भाई पारो। वे अपना चेहरा शीशे में देखकर इसलिए यहाँ से चले गए क्योंकि उनको इस परम सत्य का एहसास हो गया है कि माया इतनी प्रबल है कि सतगुरू के दरबार में भी साधु मन पर अपना जाल डालती है। उनके निर्लिप्त साधू मन में माया ने लाख टके देखने की बेचैनी पैदा कर दी।
अपने अक्स पर कालिख देखकर वह एकदम इसलिए उठ कर चले गए क्योंकि उनको यह पता लग गया है कि धन के मोह में फंसे प्राणियों का धन एकत्र करने का मोह न सिर्फ इस संसार में बल्कि गुरू नानक साहब के दरबार में भी मुँह काला करता है। अपने मन की आलोचना और गुरू नानक साहब की कृपा के चलते उनको इस सत्य का ज्ञान हो गया है इसलिए वह बिना समय बर्बाद किये माया का मोह त्याग कर उस सच्चे पिता वाहेगुरू जी के सिमरन में फिर से लीन हो गए हैं।
शिक्षा – माया का मोह जीव का मुँह इस संसार के साथ-साथ उस सच्चे पिता वाहेगुरू जी के दरबार में भी काला करवा देता है।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –