Saakhi – Datu Ji Ki Irshya
दातू जी की ईर्ष्या और गुरू साहब
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दातू जी श्री गुरु अंगद साहिब के बड़े पुत्र थे। वे सोचते थे कि गुर-गद्दी हमारा हक है। जब गुरू जी ने गुर-गद्दी श्री अमरदास जी को दी तो दातू जी बहुत गुस्सा हुए। वह अंदर ही अंदर जलने लगे।
गुरू अंगद देव जी का हुक्म मान कर गुरू अमरदास जी खडूर साहब छोड़ कर श्री गोइन्दवाल साहब चले गए थे। वहां लंगर चलता था और संगतें जुड़तीं थी। गुरू अमरदास जी का तेज प्रताप देख कर दातू जी सह नहीं सके। बल्कि वह ओर ज्यादा जल-भुन गए। एक दिन क्रोध में आए, वह श्री गोइन्दवाल जा पहुँचे।
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दीवान लगा हुआ था। बहुत सी सिक्ख जुड़े हुए थे। गुरू जी गद्दी पर बैठे हुए थे। दातू जी ने क्रोध से गुरू जी को कहा -गद्दी पुत्रों का हक है, न कि सेवक का। गुर-गद्दी का हकदार मैं हूँ। गद्दी छोड़ कर चलते बनो। यह कह कर दातू जी ने गुरू जी की कमर में जोर की लात मारी। गुरू जी चौकी से गिर पड़े। उन्होंने रत्ती भर गुस्सा न किया? बल्कि जल्दी से उठ कर दातू जी के पैर दबाने लगे और कहने लगे -‘माफ करना ! मैं बूढ़ा हूँ। मेरी हड्डियाँ बुढ़ापे के चलते सख्त हैं। आपके चरण नर्म और कोमल हैं। इनको चोट लगी होगी।
फिर गुरू जी उठ कर बाहर चले गए। वह अपने गाँव बासरके पहुँच कर गाँव के बाहर एक कमरे में जा बैठे और भजन करने लगे। बाहर दरवाजे पर उन्होंने यह हुक्म लिख दिया कि -‘जो दरवाजा खोलेगा, वह सिक्ख नहीं?’ संगतें को पता नहीं लगा कि गुरू जी कहाँ हैं। इसलिए वह घबरा गई। उन्होंने बाबा बूढ़ा जी को विनती की कि गुरू जी की खोज की जाए।
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गुरु जी जिस घोड़ी पर सवारी किया करते थे, वह खुली छोड़ दी गई। संगतें, बाबा बूढा जी सहित घोड़ी के पीछे-पीछे चल पड़े। घोड़ी उस दरवाजे के आगे जाकर खड़ी हो गई जिसमें गुरू जी भजन कर रहे थे। दरवाजे पर लिखा हुक्म देख कर बाबा जी ने कमरे की पिछली दीवार में छेद कर अंदर जा कर गुरू जी को माथा टेका और विनती की- ‘सच्चे पातशाह ! संगतों को दर्शन दीजिए। गुरू जी बाहर आए और संगतों के साथ श्री गोइन्दवाल चले गए। उस कमरे वाली जगह पर गुरुद्वारा ‘सन्ह साहिब’ है, जहाँ हर साल भादों की पूर्णिमा को भारी मेला लगता है।
शिक्षा – हमें भी गुरू साहब के जीवन से शिक्षा लेते हुए नम्रता धारण करनी चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –