Saakhi – Guru Arjan Dev Ji Or Bhai Bahodu
गुरू अरजन देव जी और भाई बहोङु
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गुरू अरजन देव जी के समय बहोङु नाम का एक जमींदार गुरू घर का पक्का सेवक था। वह दिन को खेतों में कम करता और रात को डाके डालता और चोरियाँ किया करता था। एक दिन जब वह गुरू जी के दर्शन करने आया तो गुरू जी ने उसके काम काज के बारे पूछा तो उसने अपने चोरियाँ करने और डाके डालने का सारा हाल बता, अपनी कल्याण की मांग की।
गुरू जी बोले, ‘धर्म की कर्म-कार और व्यवहार चलाओ। सतिनाम वाहिगुरू का सुबह शाम सिमरन करो। जिनके लिए पाप और छल कर रहा है, उनमें से कोई भी कोई सगा संबंधी परलोक में तुम्हारा सहायक नहीं होगा। तुम्हारे कर्मों का फल तुम्हें ही भोगना पड़ेगा। इसलिए शुभ काम, सत्संग, सेवा, भक्ति करो और पूरे परिवार का प्रभु का जानकर अभिमान छोड़ रखो।Ó
गुरू के वचन बडभागियों (अच्छे भाग्य वालों) के अंदर तीखे तीर का काम करते हैं। भाई बहोङु उसी दिन से धर्म के कार्यों में जुट गया और घर आए सिक्ख, साधु की सेवा और भक्ति करने लगा। एक दिन एक ठग, सिक्ख बन कर उस के घर आया। बहोङु ने उसे स्नान करवा कर अच्छा भोजन खाने को दिया। देर रात तक दोनों सत्संग की बातें करते रहे।
बीस दिन तक वह ठग बहोङु के घर टिका रहा और बहोङु का सारा परिवार उसकी प्रेम के साथ सेवा करता रहा। वह ठग बहोङु की बेटी के साथ मिल गया। हालांकि बहोङु को उसकी इस करतूत के बारे में पता चल गया था लेकिन पूरा परिवार गुरू का समझ कर चुप कर रहा और यहाँ तक कि एक दिन उसने सुबह के वक्त दोनों को एक साथ सोए देख लिया तो उन पर अपना चादरा (लूंगी जैसा मोटा वस्त्र) डाल कर चला गया और मन में थोड़ी भी गिलानी नहीं की।
दिन चढऩे पर लड़की ने अपने पिता का चादरा पहचान कर उस ठग को बताया तो वह अगले पल ही सब धन और गहना लेकर चलता बना। रास्ते में उसे सामने से आता हुआ बहोङु मिल गया। जिसे देख कर ठग डर से काँपने लगा और उसके सिर से सामान की गठरी गिर पड़ी वहीं बहोङु भी जान गया कि यह सारा धन-माल मेरा ही है।
फिर भी भाई बहोङु ने उस ठग को धीरज देते हुए कहा, ‘इनमें से मेरी तो कोई भी चीज नहीं हैं, सब गुरू की माया है। और उसे फिर से अपने घर ले आया और बेटी सहित सारा धन-माल स्वयं उसके साथ जाकर ठग के घर छोड़ आया, दिल में जरा भी फिक्र नहीं किया। भाई बहोङु की पत्नी भी उसकी तरह ही थी। इतना सब होने के बावजूद शांति धारण करके बैठी रही।
परन्तु इस शांत और सम दृष्टि का फल यह हुआ कि जबसे वह ठग माया और बहोङु की पुत्री ले कर घर आया था तब से उसे चैन नहीं मिल पा रहा था। उसका दिल चाह रहा था कि वह जितनी जल्दी हो सके भाई बहोङु से मिले और अपनी गलती के लिए माफी मांगे। जैसे तैसे रात गुजारी। दूसरे दिन सुबह ही अपने किये पर पछतावा करता हुए सारा धन दौलत और बहोङु की पुत्री लेकर बहोङु के चरण आ पकड़े। बहोङु उस ठग को साथ ले कर गुरू जी के पास आया तो गुरू जी स्वयं उठकर, आगे बढ़कर बहोङु को मिले और धनसिक्खी धनसिक्खी तीन बार कह कर सारी कथा उपस्थित संगत को सुनाई। फिर तो ठग भी गुरू जी के दर्शन कर पूर्ण रूप से सच्चा सिक्ख बन गया और भाई बहोङु की पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया गया।
शिक्षा – हमें गुरु के वचनों पर भरोसा रखते हुए उसी अनुसार कर्म करने चाहिए। इससे हमारी कभी भी बुरा नहीं होगा और हमारी संगत में आकर बुरे लोग भी सुधर जाएंगे।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chukk Baksh Deni Ji –