Saakhi – Guru Gobind Singh Ji and Jogi
गुरू गोबिन्द सिंह जी द्वारा जोगियों को डांटना
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आनंदपुर की धरती पर एक बार सन्यासी पंथ के साथ सम्बन्ध रखने जोगियों की जमात (टोली) आई। सतगुरू जी को अभिवादन कर, सतगुरू के सम्मुख बैठ अपने बीते समय की प्रशंसा उन सन्यासियों ने सतगुरू जी के आगे करते हुए कहा कि हम केवल परमात्मा ने यह शरीर, जो कि माया का पुतला है इसके अलावा हम स्थूल माया को हाथ तक नहीं लगाते। गर्मी -सर्दी का समय आने पर किसी ईश्वर के प्यारे के आगे व्यथा कह देते हैं; परमात्मा उनके मन में बस कर हमारी जरूरत पूरी कर देता है।
इसके साथ ही उन्होंने गुरु जी से यह सवाल किया कि पातशाह ! आपके पास माया के भंडार भरे पड़े हैं, सर्दी का मौसम आने वाला है, हमें गर्म वस्त्रों की जरूरत है। अब परमात्मा हमें प्रेरित कर आपके पास ले आया है, आप हमारे पर कृपा कीजिए और हमारी यह जरूरत पूरी कीजिए।
सतगुरू जी मुस्कराए और सन्यासियों को हुक्म किया कि आप अपनी, पोथियाँ, तुंबे, कुठारियें, चिप्पियें, प्याले आदि सारा समान एक जगह रख दें और लंगर ग्रहण करें। सतगुरू जी का वचन मान कर सन्यासी लंगर ग्रहण करने के लिए पंगत में बैठ गए।
इधर सतगुरू जी ने इनका पोल खोलने के लिए कुछ सिंघों को अपने पास बुलाया और हुक्म किया कि इनकी पोथियाँ खोल कर देखो और जितनी माया (रुपये, पैसे) निकले उसी पोथी में रखते जाओ और दूसरे सिक्खों को कहा कि आप गर्म कोयले लाओ और इनकी चिप्पियों, कुठारियों, तूंबों के नीचे या अंदर जो राल लगी है, उसे गर्म करके देखो, इनमें से क्या कुछ निकलता है?
सचमुच जब सिक्खों ने सन्यासियों की पोथियाँ खोलीं तो पोथियों के बाहर के कपड़ों (पोथियों के कवरों) में से मोहरों निकलीं। जब तुंबों, चिप्पियों की राल गर्म करके उतारी तो उनमें से भी मोहरें और रुपए निकले। जब सन्यासी सतगुरू के चरणों में वापस आए तो अपना भेद खुल जाने पर बड़े शर्मिंदा हुए। सतगुरू जी ने उनको संबोधन करके कहा कि आप तो स्वयं को अतीत प्रकट करते थे और कहते था कि हमनें कभी माया को हाथ तक नहीं लगाया।
यह मोहरें और रुपए किसके लिए रखे हुए हैं ? अगर सर्दी लगती है तो इन पैसों लोईयाँ और गर्म कपड़े आदि ले, तन ढको। तुम स्वयं को माया से अतीत दिखा कर लोगों के आगे हाथ फैला भिखारी बन मांगते हो, साधु का इस तरह का कर्म अच्छा लगता नहीं; सतगुरू नानक पातशाह जी का आदेश है –
गुरु पीरु सदाए मंगण जाइ ॥ ता कै मूलि न लगीऐ पाइ ॥
मः 1, अंग 1245
जो व्यक्ति किसी के आगे हाथ फैला कर मांगता है, ऐसे भिखारी को जगह-जगह से फिटकारें (बद्दुआएं) ही मिलती हैं। मांगने वाले को न संसार में और न प्रभु की दरगाह में कोई मान-सत्कार मिलता है। सतगुरू नानक पातशाह जी का फुरमान है –
लोकु धिकारु कहै मंगत जन मागत मानु न पाइआ ॥
रामकली महला 1, अंग 878
जिसके पास कुछ भी न हो वह तो माँगे; आप मोहरों, रुपयों के पास होते हुए भी जगह-जगह पर जा कर हाथ फैला कर फकीरी वेश को दागदार कर रहे हो। हमें बताओ यह मोहरें, रुपए जो आप पोथियों, चिप्पियों में और कुठारियों में लाख और राल लगाकर छुपा रखी हैं, इसका क्या करना हैं? न आपकी पत्नी, न बेटियाँ, न पुत्र, तुम लोग तो ग्रहस्थ लोगों को भी मात दे रहे हो। सतगुरु जी की डांट सुन कर सभी सन्यासियों ने माफी माँगीं और आगे से ऐसा पाखंड करने से तौबा की।
शिक्षा – हमें भी इन सन्यासियों की तरह माया एकत्रित करने की बजाय अपनी जरूरतें पूरी करने के बाद बचा हुआ धन जरुरतमंदों के हित में खर्च करना चाहिए।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –
महान गुरु के महान चमत्कार धन बाबा गुरु गोबिंद सिंह जी
आपने एक बहुत सुन्दर कहानी प्रस्तुत की है , और आपके लेखन की कला इस कहानी को और अधिक सुन्दर बना देती है | ऐसे ही लिखते रहिये
आप सभी इसी तरह हमारे साथ जुड़े रहें और इन सभी गुरबानी पोस्ट्स को आगे शेयर करके सिक्खी का परचार करने में हमारी मदद करें, बहुत बहुत धन्यवाद जी|