Saakhi – Guru Sahib Or Sai Fakeer
गुरु गोबिन्द सिंह जी और मुसलमान सांई फकीर
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एक बार श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज का आनंदपुर साहब में दरबार सजा हुआ था और स्वयं तख्त पर विराजमान थे। आप जी ने सुंदर पोशाक पहनी हुई थी और सिर पर कलगी शोभायमान थी। एक हाथ में बाज और दूसरे हाथ में शमशीर पकड़ हुई थी। पीठ पर सोने की नोकों वाले तीरों से भरा हुआ भत्था (तरकश) लटक रहा था। दूर-नजदीक से आईं संगतों में से एक तरफ शूरवीर सिंह और दूसरी ओर सिहंनीआं बैठीं गुरू जी के वचन सुन रही थीं। तभी एक मुसलमान सांईं फकीर दर्शनों को आया परन्तु यह सारा शाही ठाठ देख कर पीछे ही खड़ा हैरान हो रहा था उसकी सोच थी कि नानक पीर की गद्दी का वारिस कोई फकीरी लिबास में फटे पुराने कपड़े पहने, सिर पर जटाएं और हाथ में माला वाला व्यक्ति होगा। यहाँ तो बिल्कुल उलट बात हो रही है।
इतने में काबुल की संगत आ गई जिसमें बड़ी संख्या में नौजवान लड़कियां व महिलाएं थी। सभी ने आ कर गुरू जी को मात्था टेका और गुरुजी ने सबको आशीषें दीं। यह सारा नजारा देख कर फकीर की श्रद्धा और भी डगमगा गई कि जो गुरू ऐसे शहनशाह वाले ठाठ में रहता हो वह कैसे भक्ति कर सकता है और जिसके आगे पीछे सुंदर स्त्रियां घूमती रहती हों वह कैसे कामवासना से बचा रह सकता है ? दिल आगे जाने को न हुआ और निराश हो कर वापस मुडऩे लगा। अंतर्यामी गुरू साहब ने देख लिया और एक सिक्ख को भेजा कि उस फकीर को बुला कर लाया जाए।
जब फकीर पास आया तो गुरू जी ने कहा कि सांई फकीर वापस क्यों जा रहे हो ? फकीर ने उत्तर दिया ‘जो मैनें देखना था देख लिया है। ‘सारा झूठ का प्रसार है, ऊँची दुकान पर फीका पकवान है।’ गुरू जी ने कहा कि सांईं फकीर तुम्हें पता नहीं है कि आज से दसवें दिन तुम्हारी मौत हो जाएगी। यह सुनते ही फकीर बहुत घबरा गया और गुरू के चरणों पर गिर पड़ा और हाथ जोड़ कर विनती की कि अगर यह सत्य है तो मुझे अपने चरणों में थोड़ी जगह दे दीजिए ताकि मैं यह बाकी के थोड़े दिन बंदगी करके गुजार सकूँ। गुरू जी मान गए और उसके रहने, खाने-पीने का सारा प्रबंध करवा दिया। अब फकीर सब कुछ भूल गया और हर समय अल्लाह-अल्लाह का जाप करने लग गया।
4-5 दिनों बाद गुरु दरबार में एक वैश्या अपने साथियों के साथ आई और अपनी नृत्यकारी दिखाने के लिए समय माँगा। गुरू जी ने साफ मना कर दिया कि गुरू नानक के दरबार में नाच और गानों के लिए कोई जगह नहीं हैं। फिर ख्याल आया कि चलो इसको फकीर के पास भेज देते हैं जिससे उसका दिल बहल जायेगा।
जब वैश्या फकीर के पास पहुँची तो वह कानों पर हाथ रख तौबा-तौबा करने लगा और कहा कि कि इसको यहाँ से ले जाओ। इतने में गुरू जी भी आ गए और समझाया कि देखो सांई फकीर, आपको अब निश्चय है कि आपकी 5 दिनों बाद मौत हो जानी है तो आप कोई भी गलत काम करने के लिए राजी नहीं हो। इसी तरह हमें तो यह भी भरोसा नहीं कि जो एक श्वास बाहर गया वह वापस भी आऐगा कि नहीं तो हमारे अंदर बुरे विचार कैसे पैदा हो सकते हैं ? खैर यह तो सारा नाटक आपको समझाने के लिए करना पड़ा।
जाओ सांई फकीर अभी आपकी मौत आने वाली नहीं है और हमेंशा बाबा नानक का यह कलाम याद रखना –
हरि जपदिआ खिनु ढिल न कीजई मेरी जिंदुड़ीए मतु कि जापै साहु आवै कि न आवै राम ॥ – अंग 540
अर्थ : हे मेरी सुंदर सी जीवात्मा! परमात्मा का नाम जपते हुए रक्ती भर भी देर नहीं करनी चाहिए। क्या पता! अगला श्वास लिया जाय कि ना लिया जाए।
आओ हम भी जरा सोचें कि जो उपदेश गुरू जी सांई फकीर को दे रहे थे, वह खास तौर पर हमारे लिए भी है।
शिक्षा – गुरबाणी हमें बार-बार चेतावनी देती है कि ऐ जीव ! जरा सावधान हो क्योंकि तू सदा यहाँ संसार में बैठा नहीं रहेगा। तुझे परमात्मा की तरफ से गिनती के श्वास मिले हैं और जब वह पूरे हो गए तो मौत का बुलावा निश्चिय ही आ जायेगा। इसलिए नाम जप कर अपनी श्वासों की पूँजी को सही तरीके से खर्च कर।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –