Saakhi – Satguru Kalgidhar Or Gursikh
सतगुरू कलगीधर और गुरसिक्ख
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सतगुरू जी दीवान की समाप्ति के बाद अपने निजी स्थान के लिए जा रहे थे कि थोड़ी दूर एक गुरसिक्ख बड़े प्रेम के साथ गुरू नानक देव जी की पवित्र बाणी दखणी औंकार पढ़ रहा था। जब सतगुरू जी गुरसिक्ख के पास से गुजर रहे थे तब गुरसिक्ख ”करते की मिति करता जाणै कै जाणै गुरु सूरा ॥3॥” पंक्ति पढ़ रहा था। सतगुरू जी रुक गए और एक गुरसिक्ख को हुक्म किया कि इस से पाँच ग्रंथी ले लो और इसके एक थप्पड़ मारो।
सिक्ख ने सतगुरू जी का हुक्म मान कर बाणी पढ़ रहे गुरसिक्ख के थप्पड़ मारा। बाणी पढऩे वाला गुरसिक्ख बड़ा हैरान हुआ कि मैं तो गुरबाणी पढ़ रहा था। सतगुरू जी ने मेरे थप्पड़ क्यों मरवायी? गुरसिक्ख ने उठ कर हाथ जोड़ गुरू साहब जी के चरणों में बहुत विनम्रता के साथ विनती की पातशाह! मैं भूलने वाला हूँ मुझे अपनी गलती का पता नहीं लगा मैं तो यमदूतों की मार से बचने के लिए गुरबाणी पढ़ रहा हूँ अगर यहाँ बाणी पढऩे पर थप्पड़ें पडऩीं हैं तो फिर ईश्वर की दरगाह में गुरबाणी यमदूतों की मार से कैसे बचाऐगी?
सतगुरू कलगीधर जी बैठ गए और गुरसिक्ख को समझाया गुरू प्यारों ! ‘वाणी गुरू गुरू है बाणी’, गुरबाणी गुरू का शरीर है। इस को खंडित पढऩा या लग-मात्राएं तोड़ कर पढऩे से गुरू के अंग, भंग होते हैं। दूसरा, जो गुरबाणी में सतगुरू जी ने सिद्धांत प्रदान किया है उन सिद्धांतों के, अर्थों के, अनर्थ हो जाते हैं। तुम फिर वही पंक्तियाँ दोबारा पढ़ो। गुरसिक्ख ने फिर वही पंक्तियाँ ”करते की मिति करता जाणै कै जाणै गुरु सूरा ॥3॥” पढ़ी। सतगुरू जी कहने लगे गुरसिक्खा ! इसी कारण तुझे थप्पड़ मरवायी है। असल पंक्ति – करते की मिति करता जाणै कै जाणै गुरु सूरा ॥3॥, म. 1 अंग 930
तुम ‘कै’ की जगह ‘के’ पढ़ता है, दुलावां की जगह एक लांव पढऩे से सारी पंक्ति का अर्थ ही बदल गया है। ‘कै’ पढऩे से अर्थ बनता है, ‘करतार की महिमा करतार स्वयं ही जानता है, या करतार की महिमा शूरवीर सतगुरू जानता है।’ ‘के’ पढऩे से अर्थ बन जाता है कि करतार की महिमा करतार स्वयं ही जानता है, गुरू सूरमा नहीं जानता। इसलिए ‘के’ एक लाव पढऩे से पंक्ति के अर्थ बिल्कुल ही उलट हो गए। गुरू और परमेश्वर में फर्क नहीं है।
सतगुरू अरजन साहिब पातशाह जी का गौंड राग में वचन भी है कि ऐ गुरसिक्ख! गुरू और परमेश्वर एक रूप हैं ‘गुरु परमेसरु ऐको जाणु’ जब भी गुरबाणी का पाठ करना हो बड़े ध्यान के साथ लग-मात्राएं सहित विश्राम ठीक जगह पर लगा कर गुरु बाणी का उच्चारण करना चाहिए। तब ही गुरू की पूर्ण प्रसन्नता होती है तथा गुरबाणी उच्चारण करने वाले को भी गुरबानी का पूर्ण ज्ञान होता है। गुरसिक्ख ने हाथ जोड़ अपनी गलती स्वीकार कर सतगुरू जी से अपनी भूल की माँफी माँगी।
शिक्षा – जब भी हम गुरबाणी का उच्चारण करें लग-मात्राएं विचार कर करना चाहिए तब ही हम सतगुरू जी की प्रसन्नता के पात्र बन सकते हैं और गुरबाणी का पूरा ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
Waheguru Ji Ka Khalsa Waheguru Ji Ki Fateh
– Bhull Chuk Baksh Deni Ji –