Sangrand Hukamnama Greetings Mahina Katak – Dhansikhi

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Sangrand Hukamnama Mahina Katak

Sangrand Hukamnama Greetings Mahina Katak - Dhansikhi
Sangrand Hukamnama Greetings Mahina Katak – Dhansikhi

Sangrand Hukamnama Mahina Katak

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Sangrand Hukumnama Katak

ਬਾਰਹ ਮਾਹਾ ਮਾਂਝ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥

ਕਤਿਕਿ ਕਰਮ ਕਮਾਵਣੇ ਦੋਸੁ ਨ ਕਾਹੂ ਜੋਗੁ ॥ ਪਰਮੇਸਰ ਤੇ ਭੁਲਿਆਂ ਵਿਆਪਨਿ ਸਭੇ ਰੋਗ ॥ ਵੇਮੁਖ ਹੋਏ ਰਾਮ ਤੇ ਲਗਨਿ ਜਨਮ ਵਿਜੋਗ ॥ ਖਿਨ ਮਹਿ ਕਉੜੇ ਹੋਇ ਗਏ ਜਿਤੜੇ ਮਾਇਆ ਭੋਗ ॥ ਵਿਚੁ ਨ ਕੋਈ ਕਰਿ ਸਕੈ ਕਿਸ ਥੈ ਰੋਵਹਿ ਰੋਜ ॥ ਕੀਤਾ ਕਿਛੂ ਨ ਹੋਵਈ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਸੰਜੋਗ ॥ ਵਡਭਾਗੀ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲੈ ਤਾਂ ਉਤਰਹਿ ਸਭਿ ਬਿਓਗ ॥ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਰਾਖਿ ਲੇਹਿ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬ ਬੰਦੀ ਮੋਚ ॥ ਕਤਿਕ ਹੋਵੈ ਸਾਧਸੰਗੁ ਬਿਨਸਹਿ ਸਭੇ ਸੋਚ ॥੯॥

ਕਤਿਕਿ = ਕੱਤਕ (ਦੀ ਠੰਡੀ ਬਹਾਰ) ਵਿਚ। ਕਾਹੂ ਜੋਗੁ = ਕਿਸੇ ਦੇ ਜ਼ਿੰਮੇ, ਕਿਸੇ ਦੇ ਮੱਥੇ। ਵਿਆਪਨਿ = ਜ਼ੋਰ ਪਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਰਾਮ ਤੇ = ਰੱਬ ਤੋਂ। ਲਗਨਿ = ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਜਨਮ ਵਿਜੋਗ = ਜਨਮਾਂ ਦੇ ਵਿਛੋੜੇ, ਲੰਮੇ ਵਿਛੋੜੇ। ਮਾਇਆ ਭੋਗ = ਮਾਇਆ ਦੀਆਂ ਮੌਜਾਂ, ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਐਸ਼। ਵਿਚੁ = ਵਿਚੋਲਾ ਪਨ। ਕਿਸ ਥੈ = (ਹੋਰ) ਕਿਸ ਕੋਲ? ਰੋਜ = ਨਿਤ, ਹਰ ਰੋਜ਼। ਕੀਤਾ = ਆਪਣਾ ਕੀਤਾ। ਧੁਰਿ = ਧੁਰ ਤੋਂ, ਪ੍ਰਭੂ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ। ਸਭਿ = ਸਾਰੇ। ਬਿਓਗ = ਵਿਛੋੜੇ ਦੇ ਦੁੱਖ। ਕਉ = ਨੂੰ। ਪ੍ਰਭੂ = ਹੇ ਪ੍ਰਭੂ! ਬੰਦੀ ਮੋਚ = ਹੇ ਕੈਦ ਤੋਂ ਛੁਡਾਣ ਵਾਲੇ! ਬਿਨਸਹਿ = ਨਾਸ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਸੋਚ = ਫ਼ਿਕਰ ॥

ਕੱਤਕ (ਦੀ ਸੁਹਾਵਣੀ ਰੁੱਤ) ਵਿਚ (ਭੀ ਜੇ ਪ੍ਰਭੂ-ਪਤੀ ਨਾਲੋਂ ਵਿਛੋੜਾ ਰਿਹਾ ਤਾਂ ਇਹ ਆਪਣੇ) ਕੀਤੇ ਕਰਮਾਂ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਹੈ, ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦੇ ਮੱਥੇ ਕੋਈ ਦੋਸ ਨਹੀਂ ਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਪਰਮੇਸਰ (ਦੀ ਯਾਦ) ਤੋਂ ਖੁੰਝਿਆਂ (ਦੁਨੀਆ ਦੇ) ਸਾਰੇ ਦੁੱਖ-ਕਲੇਸ਼ ਜ਼ੋਰ ਪਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ (ਇਸ ਜਨਮ ਵਿਚ) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਯਾਦ ਵੱਲੋਂ ਮੂੰਹ ਮੋੜੀ ਰੱਖਿਆ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ (ਫਿਰ) ਲੰਮੇ ਵਿਛੋੜੇ ਪੈ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਜੇਹੜੀਆਂ ਮਾਇਆ ਦੀਆਂ ਮੌਜਾਂ (ਦੀ ਖ਼ਾਤਰ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਭੁਲਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ, ਉਹ ਭੀ) ਇਕ ਪਲ ਵਿਚ ਦੁਖਦਾਈ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, (ਉਸ ਦੁਖੀ ਹਾਲਤ ਵਿਚ) ਕਿਸੇ ਪਾਸ ਭੀ ਨਿਤ ਰੋਣੇ ਰੋਣ ਦਾ ਕੋਈ ਲਾਭ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, (ਕਿਉਂਕਿ ਦੁੱਖ ਤਾਂ ਹੈ ਵਿਛੋੜੇ ਦੇ ਕਾਰਨ, ਤੇ ਵਿਛੋੜੇ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ) ਕੋਈ ਵਿਚੋਲਾ-ਪਨ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ। (ਦੁਖੀ ਜੀਵ ਦੀ ਆਪਣੀ) ਕੋਈ ਪੇਸ਼ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦੀ, (ਪਿਛਲੇ ਕੀਤੇ ਕਰਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ) ਧੁਰੋਂ ਹੀ ਲਿਖੇ ਲੇਖਾਂ ਦੀ ਬਿਧ ਆ ਬਣਦੀ ਹੈ। (ਹਾਂ!) ਜੇ ਚੰਗੇ ਭਾਗਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭੂ (ਆਪ) ਆ ਮਿਲੇ, ਤਾਂ ਵਿਛੋੜੇ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਸਾਰੇ ਦੁੱਖ ਮਿਟ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। (ਨਾਨਕ ਦੀ ਤਾਂ ਇਹੀ ਬੇਨਤੀ ਹੈ-) ਹੇ ਮਾਇਆ ਦੇ ਬੰਧਨਾਂ ਤੋਂ ਛੁਡਾਵਣ ਵਾਲੇ ਮੇਰੇ ਮਾਲਕ! ਨਾਨਕ ਨੂੰ (ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਤੋਂ) ਬਚਾ ਲੈ। ਕੱਤਕ (ਦੀ ਸੁਆਦਲੀ ਰੁੱਤ) ਵਿਚ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਾਧ ਸੰਗਤ ਮਿਲ ਜਾਏ, ਉਹਨਾਂ ਦੇ (ਵਿਛੋੜੇ ਵਾਲੇ) ਸਾਰੇ ਚਿੰਤਾ ਝੋਰੇ ਮੁੱਕ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ॥੯॥

Sangrand Hukamnama Mahina Katak in Hindi

बारह माहा मांझ महला ५ घरु ४
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

कतिकि करम कमावणे दोसु न काहू जोगु ॥ परमेसर ते भुलिआं विआपनि सभे रोग ॥ वेमुख होए राम ते लगनि जनम विजोग ॥ खिन महि कउड़े होइ गए जितड़े माइआ भोग ॥ विचु न कोई करि सकै किस थै रोवहि रोज ॥ कीता किछू न होवई लिखिआ धुरि संजोग ॥ वडभागी मेरा प्रभु मिलै तां उतरहि सभि बिओग ॥ नानक कउ प्रभ राखि लेहि मेरे साहिब बंदी मोच ॥ कतिक होवै साधसंगु बिनसहि सभे सोच ॥९॥

कतकि = कार्तिक (की ठण्डी बहार) में। काहू जोगु = किसी के जिम्मे, किसी के माथे। विआपनि = जो डाल देते हैं। राम ते = रब से। लगनि = लग जाते हैं। जनम विजोग = जन्मों के विछोड़े, लम्बी जुदाई। माइआ भोग = माया की मौजें, दुनिया की ऐश। विचु = बिचौलापन। किस थै = (और) किस के पास? रोज = नित्य। कीता = अपना किया। धुरि = धुर से, प्रभु की हजूरी से। सभि = सारे। बियोग = बिछोड़े का दुख। कउ = को। प्रभू = हे प्रभु! बंदी मोच = हे कैद से छुड़ाने वाले! बिनसहि = नाश हो जाते हैं। सोच = फिक्र।

अर्थ: कार्तिक (की सुहावनी ऋतु) में (भी अगर प्रभु पति से विछोड़ा रहा तो ये अपने) किए कर्मों का नतीजा है, किसी और के माथे कोई दोश नहीं लगाया जा सकता। परमेश्वर की याद से टूटने से (दुनिया के) सारे दुख-कष्ट आ चिपकते हैं। जिन्होंने (इस जन्म में) परमात्मा की याद से मुंह मोड़े रखा, उन्हें (फिर) लम्बे विछोड़े पड़ जाते हैं। जिस माया की मौजों (की खातिर प्रभु को भुला दिया था, वह भी) एक पल में दुखदायी हो जाती हैं। (उस दुखी हालत में) कहीं भी नित्य रोने रोने का लाभ नहीं होता, (क्योंकि दुख तो है विछोड़े के कारण, और विछोड़े को दूर) कोई बिचोलापन नही कर सकता। (दुखी जीव की अपनी) कोई पेश नही चलती। (पिछले कर्मों अनुसार) धुर से ही लिखे लेखों की बिधि आ बनती है। (हां!) अगर सौभाग्य से प्रभु (स्वयं) आ मिले, तो बिछोड़े से पैदा हुए सारे दुख मिट जाते हैं। (नानक की तो यही बिनती है:) हे माया के बंधनों से छुड़ाने वाले मेरे मालिक! नानक को (माया के मोह से) बचा ले। कार्तिक (की मजेदार ऋतु) में जिन्हें साधु-संगत मिल जाए, उनके (विछोड़े वाली) सारी चिंताएं फिक्रें समाप्त हो जाती हैं।

Sangrand Hukamnama Mahina Katak in English

Baareh Maahaa Maanjh Mehalaa 5 Ghar 4
Ik Oankaar Sathigur Prasaadh ||

Kathik Karam Kamaavanae Dhos N Kaahoo Jog || Paramaesar Thae Bhuliaaan Viaapan Sabhae Rog || Vaemukh Hoeae Raam Thae Lagan Janam Vijog || Khin Mehi Kourrae Hoe Geae Jitharrae Maaeiaa Bhog || Vich N Koee Kar Sakai Kis Thhai Rovehi Roj || Keethaa Kishhoo N Hovee Likhiaa Dhhur Sanjog || Vaddabhaagee Maeraa Prabh Milai Thaan Outharehi Sabh Bioug || Naanak Ko Prabh Raakh Laehi Maerae Saahib Bandhee Moch || Kathik Hovai Saadhhasang Binasehi Sabhae Soch ||9||

In the month of Katak, do good deeds. Do not try to blame anyone else. Forgetting the Transcendent Lord, all sorts of illnesses are contracted. Those who turn their backs on the Lord shall be separated from Him and consigned to reincarnation, over and over again. In an instant, all of Maya’s sensual pleasures turn bitter. No one can then serve as your intermediary. Unto whom can we turn and cry? By one’s own actions, nothing can be done; destiny was pre-determined from the very beginning. By great good fortune, I meet my God, and then all pain of separation departs. Please protect Nanak, God; O my Lord and Master please release me from bondage. In Katak, in the Company of the Holy, all anxiety vanishes. ||9||

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