Sikh History : Chabian Da Morcha – Dhansikhi

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Chabian Da Morcha चाबियों का मोर्चा

Sikh History : Chabian Da Morcha - Dhansikhi
Sikh History : Chabian Da Morcha – Dhansikhi

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चाबियों का मोर्चा फतह दिवस (19 जनवरी 1922)

Chabian Da Morcha

शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति और शिरोमणी अकाली दल द्वारा ब्रिटिश सरकार से श्री हरिमन्दर साहब श्री अमृतसर से सम्बन्धित तोशाख़ाना (खजाने) आदि की चाबियाँ लेने के लिए किये गए संघर्ष को चाबियों का मोर्चा कहा जाता है। यह मोर्चा 19 अक्तूबर, 1921 ई. से ले कर 10 जनवरी, 1922 ई. तक चला। चाहे 20 अप्रैल, 1921 ई. को सरकार ने श्री दरबार साहब श्री अमृतसर का प्रबंध सिक्खों के हवाले कर दिया था। परंतु तोशाख़ाने की चाबियाँ अभी तक सरकार के प्रतिनिधि स. सुन्दर सिंह के पास ही थीं। स. सुन्दर सिंह न सिर्फ सरकार की और से गुरुद्वारा साहब के प्रतिनिधि थे बल्कि समिति द्वारा स्थापित मैनेजर भी थे। मगर यह बात पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी कि चाबियों का रक्षक प्रधान है या सरकार। यह चाबियाँ अमृतसर के डी.सी. (जिला कलेक्टर) ने तारीख़ 7 नवंबर, 1921 को लाला अमरनाथ ई.ए.सी. के द्वारा प्रतिनिधि से जब्त कर ली गई जो जो इस सारी जद्दोजहद का कारण बनीं।

स. सुन्दर सिंह के इस्तीफ़ा देने के बाद बाबा खड़क सिंह जी को शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति का प्रधान चुना गया। शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने 29 अक्तूबर, 1921 ई. को एक सभा कर सरकार से चाबियों की माँग की। इस सभा में स. सुन्दर सिंह भी शामिल थे। सरकार ने शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति को सिक्खों की प्रतिनिधि संस्था मानने से इन्कार करते हुए चाबियाँ देने से इन्कार कर दिया।

11 नवंबर, 1921 ई. को शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति ने सरकार के साथ असहयोग का संकल्प पास कर दिया और फ़ैसला किया कि प्रिंस आफ वेलज़ का अमृतसर आने पर बाइकाट किया जायेगा। अमृतसर शहर में हड़ताल की जाये और किसी भी गुरुद्वारा साहब में उनका प्रसाद स्वीकृत न किया जाये।

सरकार ने कैप्टन बहादर सिंह को नया प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया। 12 नवंबर, 1921 ई. को शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की तरफ से फ़ैसला किया गया कि नये प्रतिनिधि को गुरुद्वारा साहब के प्रबंध में दख़ल न देने दिया जाये। 15 नवंबर को श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश गुरपर्व पर प्रतिनिधि आया परन्तु उसे किसी ने तवज्जो नहीं दी।

26 नवंबर, 1921 ई. को सरकार और अकालियों की तरफ से अपना-अपना पक्ष पेश करन के लिए अजनाला में एक जलसा (सभा) का आयोजन किया गया। 26 नवंबर, 1921 ई. को शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की तरफ से भी अजनाला कान्फ़्रेंस करने का फ़ैसला किया गया। 24 नवंबर को सरकार ने हर तरह के जलसे-जुलूस करने पर पाबंदी लगा दी।

26 नवंबर को सरकार ने अजनाला में जलसा किया परन्तु अकालियों की तरफ से दीवान लगाऐ जाने के कारण 10 प्रमुख सिक्खों स. दान सिंह, स. तेजा सिंह, स. जसवंत सिंह, पंडित दीना नाथ संपादक ‘दर्द ’, बाबा खड़क सिंह, स. महताब सिंह, स. सुंदर सिंह लायलपुरी, स. तेजा सिंह समुद्री, स. अमर सिंह झबाल, मास्टर तारा सिंह आदि को गिरफ़्तार कर कर जेल भेज दिया गया। इन गिरफ़्तारियाँ के होने से यह लहर ओर तेज़ हो गई। इस घटना के विरोध के तौर पर 27 नवंबर को जगह-जगह पर रोष दिवस मनाया गया और रोष दीवान आयोजित किये गए। गुरू का बाग़ और श्री अकाल तख़्त साहब पर हर रोज़ दीवान लगने लगे। सिक्खों को गिरफ़्तार कर जेल भेजा जाने लगा। अजनाला से कैद किये सिक्खों पर मुकदमा चलाया गया। उनको 6-6 महीनो की कैद और जुर्माने की सजा जी गई।

इसके विरोध में कई देशभक्तों और सिक्खों ने श्री अकाल तख़्त साहब पर पेश हो कर खुद को गिरफ़्तारियाँ के लिए पेश किया। 1जनवरी, 1922 ई. को कई सिक्ख संस्थायों की एक कान्फ़्रेंस हुई जिसमें उन्होंने सरकार विरुद्ध संकल्प पास कर दिया। 6 दिसंबर, 1921 ई. को खालसा कालेज अमृतसर के प्रोफेसरों ने भी दो संकल्प पास किये कि शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति सिक्ख जत्थेबंदी है, इसलिए चाबियाँ इसीको दीं जाएँ। चाबियाँ सम्बन्धित दीवान धार्मिक दीवान हैं। इससे सरकार को बहुत नुकसान हुआ क्योंकि यह बयान अखबारों में भी छप गया था।

5 जनवरी, 1922 ई. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के प्रकाश गुरपर्व पर सरकार ने चाबियाँ देनीं चाहीं परन्तु अकालियों ने चाबियाँ लेने से इन्कार कर दिया और पहले कैदियों को रिहा करने  की शर्त रखी। 11 जनवरी, 1922 ई. को सरकार ने सर जान ऐनारड के द्वारा पंजाब कौंसिल में गिरफ़्तार किये गए सभी सिक्खों को रिहा करने का ऐलान कर दिया।

शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति को प्रमाणित संस्था मान लिया गया। 17 जनवरी, 1922 ई. को 193 में से 150 सिक्खों को रिहा कर दिया 19 जनवरी, 1922 ई. को श्री अकाल तख़्त साहब के सामने भारी दीवान सजा। सरकार ने अपने प्रतिनिधि भेज कर तोशेखाने की चाबियाँ बाबा खड़क सिंह जी को सौंप दीं। बाबा खड़क सिंह जी ने चाबियाँ लेने से पूर्व ऊँची आवाज़ में वहां उपस्थित संगत से पूछा कि उनको चाबियाँ लेने की इजाज़त है तो संगत के जयकारों के साथ आसमान गूँज उठा। इस लड़ाई की जीत को आज़ादी की लड़ाई की पहली जीत कहा जाता है।

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